आउट ऑफ़ टाइम - आ गयी टाइम पर।

Rating: 3.5/5

 
ऐसा अक्सर नहीं होता है कि आपको ऐसे सिनेमा का अनुभव करने का मौका मिले जो पारम्परिक फिल्मों से कुछ हट कर हो। अरिजीत लाहिड़ी की पहली फीचर फिल्म 'आउट ऑफ टाइम' कथा और सिनेमा की सीमाओं को आगे बढ़ाती है, जो अक्सर मुख्यधारा की रिलीज़ में नहीं देखी जाती हैं।
 
क्राउड-फंडिंग द्वारा इस फिल्म का निर्माण संपन्न हुआ था, जो स्पष्ट रूप से कहानीकार के जुनून व उत्साह से दर्शकों को भय व रोमांच के एक अनोखे सफर पर ले जाता है, जो काल्पनिक साइंस-फिक्शन व टाइम-लूप जैसे विषय पर होते हुए भी बहुत जटिल और मनगढ़ंत नहीं लगता है।
 
फिल्म के सह-लेखक, संपादक और निर्देशक अरिजीत लाहिड़ी, हमें अपने मुख्य नायक, समीर (डैनी सूरा द्वारा अभिनीत) के किरदार से जुड़कर यात्रा करने और विश्वसनीय छायांकन, संपादन और ध्वनि के माध्यम से एक असाधारण घटनाक्रम का अनुभव कराते हैं, जो उनके व वैभव भटनागर के ताज़ा लेखन के साथ न्याय करता है।
 
सूरा स्वयं के चरित्र से जुड़ी कई भूमिकाओं को अच्छी तरह से निभाते है, जो आपको फिल्म देखने पर दर्शकों को बेहतर समझ आएँगी। अन्य कलाकारों (मेनका लालवानी, आशीष भट्ट, साहिल फुल और सुयेशा सावंत) द्वारा अच्छा सहयोग दिया गया है, जिसमें आशीष भट्ट कहीं कहीं हास्य भी दे रहे हैं, जबकि साहिल फुल "अल्फा मेल" के रूप में उपयुक्त लगते हैं।  मेनका एक सहायक प्रेमिका की भूमिका को बखूबी निभाती हैं व कुछ दृश्यों में भय का अनुभव अपने अभिनय से कराती हैं, वहीँ सुयेशा एक ऐसी भूमिका में संतुलित रहते हुए शैतानी शक्ति का आभास कराती हैं, जिसमें अमूमन ही कलाकार ओवरएक्टिंग कर जाते हैं।
 
दिवंगत महान अभिनेता टॉम ऑल्टर द्वारा निभाया गया ब्रिटिश वैज्ञानिक मैक्सवेल का किरदार, फिल्म के शानदार रहस्यमयी कथानक में अधिक वजन जोड़ता है व उनकी अंतिम यादगार परफॉरमेंस में से एक है। इसका अधिकांश निर्माण टॉम ऑल्टर के गुजरने से पहले पूरा हो गया था।
 
नवनी परिहार दर्शकों को मानसिक बीमारी से जूझ रहे एक ऐसे चरित्र तक पहुंच प्रदान करता है जो अक्सर इस शैली की कई फिल्मों में नहीं देखा जाता है। उनकी उपस्थिति भी फिल्म की पृष्ठभूमि को बहुत गंभीरता देती है।
 
रजत तिवारी का रोमांचक बैकग्राउंड म्यूजिक व प्रांशुल शुक्ला द्वारा किया गया साउंड डिजाइन फिल्म के विषय व शैली को ध्यान में रख कर इतनी उत्कृष्टता से किया गया है कि इसे अच्छे हेडफ़ोन या बढ़िया होम थिएटर के साथ नहीं सुनने पर फिल्म का अनुभव अधूरा रहेगा।
 
मनोज सुर्वे और दक्षता पाटिल ने 'भूतिया घर' को रोमांचकारी महसूस कराने के साथ-साथ दर्शकों के लिए सजीव बनाने के लिए प्रोडक्शन डिजाइन के साथ एक नायाब  काम किया है।  
पूजा लाहिड़ी (वेशभूषा डिजाइन) ने प्रत्येक पात्र को कथा के विभिन्न काल के अनुसार विशिष्ट रूप दिया है जो चित्रांकन को और रोचक बनाता है ।  
जेरेमी रीगन का छायांकन बेहतरीन है व इस शैली की फिल्मों में किये गए श्रेष्ठ कार्यों में से है जो प्रकाश व छाया का परस्पर प्रयोग है और फिल्म की कहानी के हर पड़ाव के अनुकूल विभिन्न दृश्यों को काफी विस्तृत तरीके से दर्शाता है।
 
कुल मिलाकर, आउट ऑफ टाइम में ज़्यादातर चीजें अच्छी तरह से की गयी हैं जो की अपने आप में एक उपलब्धि है, विशेष रूप से एक ऐसी फिल्म के लिए जिसे सीमित  संसाधनों में सम्पूर्ण किया गया है, और जाहिर है कि यह एक जटिल कहानी है जो आसानी से कई लोगों को भ्रमित कर सकती है अगर इसे अच्छी तरह से कार्यान्वित नहीं किया गया होता।
 
आउट ऑफ़ टाइम में विज्ञान के कुछ सिद्धांतो का कल्पना के समागम के साथ प्रयोग किया गया है, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा गया है की यह कहीं पर भी जटिल न होते हुए, दर्शकों के लिए दिलचस्प व मनोरंजक बानी रहे। साइंस-फिक्शन/हॉरर प्रशंसकों को यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए।