स्नान और दान का पर्व माघ पूर्णिमा, 24 फरवरी को मनाई जाएगी माघ पूर्णिमा, जानिए क्या है मान्यता

जयपुर: हिंदू धर्म में माघ पूर्णिमा का खास महत्व है. हर माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना और व्रत किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि माघ महीने की पूर्णिमा शनिवार 24 फरवरी को है. धर्म ग्रंथों में इस दिन को स्नान-दान का महापर्व कहा गया है. साथ ही पूरे साल के पूर्णिमा स्नान में माघ पूर्णिमा स्नान को सबसे उत्तम भी कहा गया है ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक माघ महीने की पूर्णिमा पर तीर्थ के जल में भगवान विष्णु का निवास होता है. साथ ही इस दिन तिल दान करने से कई यज्ञ करने जितना पुण्य फल मिलता है.

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुराण के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं. इस दिन जो भी श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं. उसके बाद जप और दान करते हैं उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है. ग्रंथों में माघ को भगवान भास्कर और श्रीहरि विष्णु का महीना बताया गया है. बुधवार को श्रद्धालु सूर्योदय के साथ ही तीर्थ स्थानों पर नदियों में स्नान करेंगे. माघ पूर्णिमा पर चंद्रमा और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. साथ ही माघ पूर्णिमा पर रात में चंद्रोदय के समय चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष दूर होता है. 

सूर्य को अर्घ्य
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि माघ पूर्णिमा तिथि 23 फरवरी 2024 को दोपहर 3:36 मिनट से होकर अगले दिन 24 फरवरी को शाम 6:03 मिनट तक रहेगी, इसलिए 24 को सुबह गंगा स्नान कर के पुण्य प्राप्त किया जा सकता है. जो गंगा तीर्थ नहीं जा सकते वो घर पर ही पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर नहा सकते हैं. इस पर्व पर स्नान के बाद ऊं घृणि सूर्याय नम: मंत्र बोलते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. इस दिन गंगा स्नान और गोदान, तिल, गुड़ व कंबल का विशेष महत्व है.

माघ पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि माघ पूर्णिमा तिथि 23 फरवरी 2024 को दोपहर 3:36 मिनट से होकर अगले दिन 24 फरवरी को शाम 6:03 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि को देखते हुए माघ पूर्णिमा 24 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी. इस दिन स्नान-दान का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 11 बजकर से सुबह 6 बजकर 02 मिनट तक है.

धार्मिक महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि ब्रह्मवर्त पदमपुराण के अनुसार अन्य मास में जप, तप, दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने माघ मास में गंगा स्न्नान करने से होते हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं. अतः इस दिन गंगाजल का स्पर्श मात्र भी मनुष्य को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति देता है. मत्स्य पुराण में वर्णन आया है कि माघ महीने या माघ पूर्णिमा के दिन गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में स्नान करने से दस तीर्थों के साथ सहस्त्र कोटि तप का पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन गंगा आदि सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से पाप और संताप का नाश होता है. मन और आत्मा की शुद्ध होती है. इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों का नाश करके दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है. स्नान और दान के वक्त ' ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का मानसिक जप करते रहना चाहिए. स्नान के बाद पात्र में काले तिल भरकर और साथ में शीत निवारक वस्त्र दान करने से धन और वंश में वृद्धि होती है.  इस दिन पितरों को तर्पण करना बहुत ही फलदायी माना गया है. ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और आयु एवं आरोग्य में वृद्धि होती है.

तीर्थ स्नान का फल
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सत्ताइस नक्षत्रों में मघा नक्षत्र के नाम से माघ पूर्णिमा हुई थी. इस तिथि का धार्मिक और आध्यात्मिक नजरिये से भी बहुत महत्व है. पूरे महीने अगर तीर्थ स्नान न कर सकें तो माघ पूर्णिमा पर गंगा या पवित्र नदियों में स्नान जरूर करना चाहिए. इससे पूरे माघ महीने में तीर्थ स्नान करने का पुण्य फल मिल जाता है. साथ ही भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की कृपा भी बनी रहती है.

माघ स्नान का वैज्ञानिक महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि माघ पूर्णिमा स्नान को सिर्फ शास्त्रों में ही नहीं बल्कि वैज्ञानिकों ने भी माना है. माघ के महीने में ऋतु परिवर्तन होता है इसलिए नदी के जल में स्नान और सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है. दूसरा कारण, चंद्रमा का सम्बन्ध मन से होने के कारण भी यह व्रत मन की पवित्रता और चित्त की शांति के लिए किया जाता है. इससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आध्यात्मिकता का विकास  होता है.